Published on: October 16, 2022 17:22 IST
रुपए की कमजोरी में छिपा है इसकी तंदुरुस्ती का राज
रुपये के कमजोर होने से जहां एक्सपोर्ट करने वाली कंपनियों को फायदा होगा, वहीं इम्पोर्ट करने वाली कंपनियों को नुकसान होगा। क्योंकि अमेरिका, चीन जैसे अपने मुख्य व्यापारिक साझेदारों के साथ भारत के व्यापार में आयात ज्यादा और निर्यात कम है, तो कमजोर रुपए से व्यापार घाटा बढ़ता जाएगा
भुवन भास्कर
भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 80.11 का अपना सबसे निचला स्तर छूने के बाद फिलहाल लगभग 50 पैसे मजबूत होकर एक दायरे में स्थिर होता दिख रहा है। लेकिन यह मान लेना कि रुपये के लिए सबसे बुरा दौर खत्म हो गया है, थोड़ी जल्दबाजी होगी। वैसे तो एक देश की मुद्रा का दूसरे देश की मुद्रा के मुकाबले मजबूत या कमजोर होना विशुद्ध तौर पर आर्थिक घटना है, लेकिन राजनीतिक शोशेबाजी और जुमलों के दौर में अक्सर रुपये की कमजोरी को राष्ट्रीय स्वाभिमान पर प्रहार के रूप में भी उछाल दिया जाता है और इसलिए कई बार रुपये का कमजोर होना सत्तारूढ़ दल के लिए आर्थिक से ज्यादा राजनीतिक चिंता का सबब बन जाता है।
रुपया यदि डॉलर के मुकाबले मजबूत हो रहा है, तो उसके क्या मायने हैं या फिर कमजोर हो रहा है, उसका क्या मतलब है? चीन दशकों से अपनी मुद्रा युआन को कृत्रिम रूप से कमजोर रख कर अमेरिका के खिलाफ भुगतान संतुलन को अपने पक्ष में रखने में कामयाब रहा है। इसको समझने की आवश्यकता है। जब किसी देश की मुद्रा कमजोर होती है तो इसका मतलब है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसके उत्पाद ज्यादा प्रतिस्पर्द्धी भाव पर उपलब्ध होते हैं।
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इसके उलट यदि कोई मुद्रा डॉलर के मुकाबले मजबूत हो रही है, तो उसका आयात सस्ता होगा और निर्यात महंगा होगा। जाहिर है कि भुगतान संतुलन के मामले में इसके कारण मजबूत मुद्रा वाला देश हमेशा नुकसान में रहेगा।
इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। यदि किसी वस्तु का मूल्य भारत में 80 रुपये है तो अमेरिकी बाजार में वह 1 डॉलर का होगा, लेकिन यदि डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होकर 40 रुपये का हो जाए, तो वही वस्तु अमेरिकी बाजार में 2 डॉलर की हो जाएगी। यह आंकड़ा सिर्फ प्रतीकात्मक और समझाने के लिए है क्योंकि देसी मूल्य में एक्सपोर्ट होने पर ट्रांसपोर्ट, टैक्स इत्यादि कई लागत जुड़ती जाएंगी। लेकिन अनुपात तो इसी तरह रहेगा।
यहां सवाल यह उठता है कि यदि रुपया कमजोर ही होता जाना अच्छा है, तो फिर रिजर्व बैंक रुपये को एक सीमा से कमजोर होने से बचाता क्यों है? क्यों बाजार में रुपये की बहुत ज्यादा आपूर्ति हो जाने पर RBI डॉलर बेचता है और इस तरह रुपये की आपूर्ति कम कर तथा डॉलर की आपूर्ति बढ़ाकर रुपये को और गिरने से संभालता है?
इसका मुख्य कारण है कि यदि रुपया एक सीमा से ज्यादा कमजोर होगा तो भारत को कच्चे तेल से लेकर दालें, तेल जैसी उन तमाम कमोडिटी के आयात के लिए ज्यादा रुपये खर्च करने होंगे, जिनके लिए हम आयात पर निर्भर हैं। इसे ऐसे समझिए कि यदि कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल है तो एक बैरल तेल डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? के लिए 80 रुपये की दर पर भारत को 8,000 रुपये खर्च करने होंगे। लेकिन यदि यही विनिमय दर 70 रुपये हो, तो भारत को 7,000 रुपये में ही एक बैरल तेल मिल जाएगा।
यानी रुपया जितना कमजोर होगा भारत का व्यापार घाटा उतना ही ज्यादा होगा क्योंकि भारत का इम्पोर्ट, एक्सपोर्ट से कहीं ज्यादा है।
एक वाक्य में समझा जाए तो रुपये के कमजोर होने से जहां एक्सपोर्ट करने वाली कंपनियों को डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? फायदा होगा, वहीं इम्पोर्ट करने वाली कंपनियों को नुकसान होगा। क्योंकि अमेरिका, चीन जैसे अपने मुख्य व्यापारिक साझेदारों के साथ भारत के व्यापार में आयात ज्यादा और निर्यात कम है, तो कमजोर रुपए से व्यापार घाटा बढ़ता जाएगा।
इसके अलावा कमजोर मुद्रा का एक और मतलब है और वह ये कि उसकी डिमांड घट रही है। लेकिन किसी मुद्रा की डिमांड क्यों घटेगी? इसलिए कि जिस अर्थव्यवस्था की वह प्रतिनिधि मुद्रा है, उसमें विश्व का भरोसा घट रहा है। इसे इस तरह समझिए कि यदि आपको लगता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का भविष्य कमजोर है, तो आप चाहे शेयर हो या प्रॉपर्टी, बिजनेस हो या पढ़ाई, सब कुछ विदेश में करना चाहेंगे और इसके लिए रुपया देकर डॉलर लेना चाहेंगे। ऐसे में बाजार में रुपये की बाढ़ आ जाएगी और भारतीय बाजार में डॉलर कम हो जाएंगे। फिर रुपया कमजोर होना लाजिमी है।
तो क्या रुपये का डॉलर के मुकाबले अपने इतिहास के सबसे निचले स्तर पर पहुंचना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कोई अशुभ संकेत है? इसे समझने के लिए सिर्फ भारत की अर्थव्यवस्था को अलग-थलग कर देखने से बात नहीं बनेगी। दरअसल इसे पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में व्याप्त परिदृश्य के संदर्भ में देखना होगा। साल 2020 में कोरोना के कारण पूरी दुनिया में आर्थिक गतिविधियों के लड़खड़ाने के बाद चीन, भारत, अमेरिका, यूरोप जैसे सभी देशों ने लाखों करोड़ डॉलर के राहत पैकेज अपने उद्योगों को दिए। इसका असर यह हुआ कि पूरी दुनिया में महंगाई दर बढ़ने लगी।
अमेरिका में महंगाई दर 41 साल के शिखर पर पहुंच गई, वहीं ब्रिटेन, जर्मनी, हॉलैंड, फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों में भी यह 8-10% तक पहुंच कर कई सालों के शीर्ष डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? पर है। भारत भी अपवाद नहीं है। ऐसे में भारत सहित पूरी दुनिया के देशों में केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी शुरू कर दी है। इसमें सबसे आक्रामक बढ़ोतरी अमेरिका ने की है।
इस साल 17 मार्च से अमेरिकी फेडरल बैंक ने 25 बेसिस प्वाइंट (bps) की बढ़ोतरी के साथ ब्याज दरों में बढ़ोतरी शुरू की और उसके बाद 5 मई को 50 bps, 16 जून को 75 bps और 27 जुलाई को 75 bps की बढ़ोतरी के साथ सिर्फ 6 महीनों में 2.25% की वृद्धि कर बेंचमार्क ब्याज दरों को 2.5% पर पहुंचा डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? दिया। डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? यह कोई मामूली वृद्धि नहीं है। इससे पहले 17 दिसंबर 2015 तक अमेरिका में ब्याज दर 0.25% थी और नौ बार में 25-25 bps की बढ़ोतरी के साथ 2.5% होने में इसे 20 दिसंबर 2018 तक यानी 3 साल का समय लगा था।
अमेरिका में इस आक्रामक ब्याज दर बढ़ोतरी का नतीजा यह हुआ कि पूरी दुनिया के शेयर बाजारों और दूसरे असेट क्लास में लगे डॉलर अमेरिकी फेड के थैले में लौटने लगे और पूरी दुनिया की मुद्राओं में कमजोरी आने लगी। दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं यूरो, ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन, स्विस फ्रैंक, कनाडाई डॉलर, और स्वीडिश क्रोना में इस साल की शुरुआत के बाद से डॉलर के मुकाबले 13% कमजोरी आई है। लेकिन भारतीय रुपये में यह कमजोरी सिर्फ 7% की रही।
इतना ही नहीं, रुपये ने G10 मुद्राओं के मुकाबले 2015 के बाद से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। G10 ऐसी 10 अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं को सम्मिलित रूप से दिया गया एक अनौपचारिक नाम है, जो अंतरराष्ट्रीय कारोबार में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं। G10 में कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के डॉलर के अलावा येन, पाउंड स्टर्लिंग, यूरो और स्विस फ्रैंक, स्वीडिशन क्रोना, डेनिश क्रोन तथा नॉर्वे क्रोन शामिल हैं।
रुपया चालू कैलेंडर वर्ष के दौरान इनमें सबसे ज्यादा येन के मुकाबले मजबूत हुआ। डॉलर के मुकाबले 24 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंचे येन डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? के मुकाबले रुपये में 10.76% की मजबूती आई। पाउंड स्टर्लिंग के मुकाबले यह 5.86% और यूरो के मुकाबले 4.74% मजबूत हुआ। कुल मिलाकर G10 प्लस अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में 2.79% की मजबूती आई। साल 2015 में आई 5.76% के बाद रुपये की इस बास्केट के मुकाबले यह दूसरी सबसे बड़ी मजबूती है।
इन आंकड़ों से साफ है कि रुपया भले ही डॉलर के मुकाबले अपने इतिहास के सबसे कमजोर दौर में हो, लेकिन यह भारतीय अर्थव्यवस्था की कमजोरी को कहीं से भी नहीं दर्शा रहा है। उलटे यह दिखा रहा है कि इस निराशाजनक दौर में भी भारतीय अर्थव्यवस्था ही है जो दुनिया भर को आशा की किरण दिखा रही है।
'रुपया नहीं गिर रहा, डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है', रुपये में लगातार आ रही गिरावट पर वित्त मंत्री ने दिया तर्क
मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने गिरते रुपये पर अपनी बात रखी और कहा कि भारतीय रुपया फिसल रहा नहीं है, बल्कि अमेरिकी डॉलर मजबूत हो रहा है।
Nirmala Sitharaman on Rupee: भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड लो पर पहुंच गया है। इस बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने गिरते रुपये पर अपनी बात रखी और कहा कि भारतीय रुपया फिसल रहा नहीं है, बल्कि अमेरिकी डॉलर मजबूत हो रहा है। वित्त मंत्री ने यह बात वाशिंगटन डीसी में एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहीं हैं। दरअसल, निर्मला सीतारमण इस समय अमेरिकी दौरे पर हैं। यहां भारत की विकास कहानी और मजबूत अर्थव्यवस्था के बारे में बोलते हुए रुपया पर अपनी बात रखीं। बता दें कि वित्त मंत्री का यह बयान रुपये के 82.69 के सर्वकालिक निचले स्तर तक गिरने के कुछ दिनों बाद आई है।
क्या बोलीं वित्त मंत्री?
एक सवाल के जवाब में सीतारमण ने कहा, "डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है। तो जाहिर है, अन्य सभी मुद्राएं मजबूत डॉलर के मुकाबले प्रदर्शन कर रही हैं। मैं तकनीकी के बारे में बात नहीं कर रही हूं, लेकिन यह तथ्य है कि भारत का रुपया शायद इस डॉलर की दर में बढ़ोतरी का सामना कर रहा है। . मुझे लगता है कि भारतीय रुपए ने कई अन्य उभरती बाजार मुद्राओं की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है।"
RBI की है नजर
निर्मला सीतारमण ने कहा कि आरबीआई (RBI) रुपये को नीचे जाने से रोकने की पूरी कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा कि RBI का ध्यान इस बात की ओर ज्यादा है कि बाजार में बड़ा उतार-चढ़ाव न हो। इसलिए केंद्रीय बैंक भारतीय करंसी को फिक्स करने के लिए बाजार में कोई दखलंदाजी नहीं कर रहा।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया और मजबूत, 4 साल के रिकॉर्ड साप्ताहिक बढ़त के बाद तेजी जारी
DollarVsRupee: अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पिछले हफ्ते की बढ़त के साथ भारतीय रुपया आज बढ़कर 80.51 पर पहुंच गया। शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 80.79 पर बंद हुआ था। पिछले हफ्ते 2% उछला था।
DollarVsRupee: अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पिछले हफ्ते की बढ़त के साथ भारतीय रुपया आज बढ़कर 80.51 पर पहुंच गया। शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 80.79 पर बंद हुआ था। पिछले हफ्ते 2% उछलने के बाद चार वर्षों में इसका सबसे बड़ा साप्ताहिक उछाल था। अमेरिका में उम्मीद से कम महंगाई के आंकड़े आने के बाद डॉलर कजोर हुआ और रुपये को फायदा हुआ।
बता दें अमेरिकी डॉलर इंडेक्स 12 हफ्ते के निचले स्तर 106.41 पर लुढ़क गया है। इस इंडेक्स में यूरो, येन, पाउंड और कनेडियन डॉलर के मुकाबले अमेरिकी डॉलर कमजोर हुआ है। वहीं, सालाना आधार पर अमेरिका में महंगाई का आंकड़ा 9 महीने के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है।
डॉलर इंडेक्स शुक्रवार को अपने चौथे साप्ताहिक गिरावट में 1% से अधिक लुढ़क गया था। अमेरिकी डॉलर में गिरावट ने रुपये को हाल के निचले स्तर से 3% बढ़ाने में मदद की है। 10 नवंबर को भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 81.92 पर पहुंच गया था। वहीं,आज रुपया शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 25 पैसे बढ़कर 80.53 पर पहुंच गया।
Rupee Vs Dollar: रुपया नहीं फिसल रहा बल्कि डॉलर हो रहा है मजबूत: सीतारमण
में वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘सबसे पहली बात, मैं इसे इस तरह नहीं देखूंगी कि रुपया फिसल रहा है बल्कि मैं यह कहना चाहूंगी कि रुपये में मजबूती आई है।
Edited By: Alok Kumar @alocksone
Published on: October 16, 2022 17:22 IST
Photo:PTI Nirmala Sitharaman
Highlights
- शुक्रवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 82.35 के भाव पर बंद हुआ
- विदेशी मुद्रा भंडार सात अक्टूबर 2022 तक 532.87 अरब डॉलर था
- एक साल पहले के 642.45 अरब डॉलर से कहीं कम है
Rupee Vs Dollar: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इस वर्ष भारतीय मुद्रा रुपये में आई आठ फीसदी की गिरावट को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हुए कहा है कि कमजोरी रुपये में नहीं आई बल्कि डॉलर में मजबूती आई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक की सालाना बैठकों में शामिल होने के बाद सीतारमण ने शनिवार को यहां संवाददाताओं से बातचीत में भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद को मजबूत बताते हुए कहा कि अमेरिकी डॉलर की मजबूती के बावजूद भारतीय रुपया में स्थिरता बनी हुई है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में भारत में मुद्रास्फीति कम है और मौजूदा स्तर पर उससे निपटा जा सकता है।
डॉलर लगातार मजबूत हो रहा
रुपये में गिरावट आने से जुड़े एक सवाल के जवाब में वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘सबसे पहली बात, मैं इसे इस तरह नहीं देखूंगी कि रुपया फिसल रहा है बल्कि मैं यह कहना चाहूंगी कि रुपये में मजबूती आई है। डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मजबूत हो रहे डॉलर के सामने अन्य मुद्राओं का प्रदर्शन भी खराब रहा है लेकिन मेरा खयाल है कि अन्य उभरते बाजारों की मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपया ने बेहतर प्रदर्शन किया है।’’ शुक्रवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 82.35 के भाव पर बंद हुआ था। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सात अक्टूबर 2022 तक 532.87 अरब डॉलर था जो एक साल पहले के 642.45 अरब डॉलर से कहीं कम है। सीतारमण ने कहा कि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की मुख्य वजह अमेरिकी डॉलर की मजबूती के कारण मूल्यांकन में बदलाव आना है। भारतीय रिजर्व बैंक का भी ऐसा ही कहना है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद अच्छी
सीतारमण ने यहां संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ‘‘भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद अच्छी है, व्यापक आर्थिक बुनियाद भी अच्छी है। विदेशी मुद्रा भंडार अच्छा है। मैं बार-बार कह रही हूं कि मुद्रास्फीति भी इस स्तर पर है जहां उससे निपटना संभव है।’’ उन्होंने कहा कि वह चाहती हैं कि मुद्रास्फीति छह फीसदी से नीचे आ जाए, इसके लिए सरकार भी प्रयास कर रही है। सीतारमण ने दहाई अंक की मुद्रास्फीति वाले तुर्किये जैसे कई देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि दूसरे देश बाहरी कारकों से बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘बाकी की दुनिया की तुलना में अपनी स्थिति को लेकर हमें सजग रहना होगा।
वित्तीय घाटे को लेकर पूरी तरह से सतर्क
मैं वित्तीय घाटे को लेकर पूरी तरह से सतर्क हूं।’’ वित्त मंत्री ने बढ़ते व्यापार घाटे के मुद्दे पर कहा, ‘‘इसका मतलब है कि हम निर्यात की तुलना में ज्यादा आयात कर रहे हैं। हम यह भी देख रहे हैं कि यह अनुपातहीन वृद्धि क्या किसी एक देश के मामले में हो रही है।’’ उनका इशारा असल में चीन के लिहाज से व्यापार घाटा बढ़कर 87 अरब डॉलर होने की ओर था।
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