निवेश पर लाभ (आरओआई) और फॉर्मूला की गणना कैसे करें

अगर आपने कहीं पैसा निवेश किया हुआ है तो उसपर आपको कितना लाभ हो रहा है इसे मापना बहुत आवश्यक है। यह एक ऐसा अनुपात है जो किसी निवेश (Investment) से उसकी लागत के सापेक्ष (Relative) लाभ या हानि की तुलना करता है। यह एक अकेले निवेश से संभावित रिटर्न का मूल्यांकन (वैलुएशन) करने में उतना ही उपयोगी है जितना कि कई निवेशों से रिटर्न की तुलना करने में।

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क्या है फडी, म्‍यूचुअल फंड, पीपीएफ, सुकन्‍या समृद्धि योजना, जानिए किसमें जल्‍दी होगा आपका रुपया डबल

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सरकार ने बैं‍क डिपॉजिट ब्‍याज दरों में में नरमी के बीच अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के लिए स्‍मॉल सेविंग स्‍कीम पर ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। गिरती ब्याज दरें निवेशकों को बेहतर रिटर्न अर्जित करने के लिए निवेश के दूसरे ऑप्‍शन तलाशने पर मजबूर कर रही हैं। सवाल यह है कि आपको कौन सा निवेश इंस्‍ट्रूमेंट चुनना चाहिए ? सबसे पहले अपनी निवेश अवधि और वह लक्ष्य तय करें जिसके लिए आप निवेश करना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप अपनी बेटी की उच्च शिक्षा के लिए बैंक FD में निवेश कर रहे थे, तो आप सुकन्या समृद्धि योजना या म्यूचुअल फंड में स्विच कर सकते हैं।

ताकि योजना को सलेक्‍ट करने में मिले मदद
एक बार जब आप अपने लक्ष्यों और जोखिम प्रोफाइल के आधार पर योजनाओं को शॉर्टलिस्ट कर लेते हैं , तो आप सबसे अच्छा रिटर्न देने वाले को चुनने के लिए रिटर्न अंतर को भी देख सकते हैं। एक आसान तुलना के लिए, यहां हम यह पता लगाएंगे कि इन निवेश साधनों को आपके निवेश को दोगुना करने में कितना समय लगता है। एक योजना का चयन करना तब आसान हो जाएगा जब आपको पता चल जाए कि कौन सी योजना आपके निवेश को तेजी से दोगुना कर देगी।

रूल 72 बताएगा आपका रुपया कब होगा डबल
यह रूल 72 आपको बताता है कि आपका पैसा कितनी तेजी से दोगुना होगा। कितना पैसा दोगुना होगा, यह जानने से पहले अपने लक्ष्यों और निवेश की अवधि निर्धारित करना महत्वपूर्ण है। आइए अब ’72 का नियम’ का उपयोग करके पता करें कि ये निवेश कितनी तेजी से पैसे को दोगुना कर सकते हैं। हम यह देखने के लिए ‘रूल 72 ′ का उपयोग करेंगे कि ये निवेश कितनी तेजी निवेश की सबसे जरुरी बात आपके धन को दोगुना कर सकते हैं। रूल 72 एक फॉर्मूला है जहां हम ’72’ संख्या को इंवेस्‍टमेंट इंस्‍ट्रूमेंट द्वारा दी जाने वाली ब्याज दर से भाग करते हैं ताकि यह अंदाजा लगाया जा सके कि आप उस विशेष निवेश के साथ अपने पैसे को कितनी जल्दी दोगुना कर सकते हैं।

कौन सा निवेश कब करेगा आपका रुपया डबल

  • बैंक एफडी की करें तो 5.5 फीसदी पर आपका रुपया डबल होने में करीब 13 साल लग जाएंगे।
  • वहीं बात पीपीएफ की करें तो 7.1 फीसदी प्रति वर्ष की ब्याज दर की पेशकश कर रहा है। ब्याज दर 7.1 फीसदी (72/7.1 = 10.14) पर बनी हुई है, तो पीपीएफ को आपके पैसे को दोगुना करने में लगभग 10 साल लग जाएंगे।
  • इसी तरह , सुकन्या समृद्धि योजना में 7.6 फीसदी की मौजूदा ब्याज दर पर आपके पैसे को दोगुना करने में लगभग 9.4 साल लगेंगे।

कर सकते हैं स्विच
ऊपर दी गई कुछ योजनाएं आपको मौजूदा ब्याज दरों पर अपने निवेश को दोगुना करने के लिए लंबी परिपक्वता अवधि प्रदान नहीं कर सकती हैं , लेकिन यह अभ्यास आपको बैंक एफडी का विकल्प चुनने में मदद करेगा और यह भी समझाने का प्रयास करेगा कि आपको निवेश से कितनी उम्मीद है। यदि आप पूरी तरह से स्विच नहीं करना चाहते हैं तो आप अपने निवेश पर बेहतर रिटर्न हासिल करने के लिए अपने पोर्टफोलियो में इन्‍हें एड कर सकते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि रूल 72 एक अनुमानित आइडिया देता है और इसमें एकमुश्‍त निवेश के पैमाने को मानता है।

Long Term Investment: लॉन्‍ग टर्म निवेश के लिए क्‍या हो सकते हैं बेहतर विकल्‍प, आसान बिंदुओं में समझें

किसी फंड हाउस में हर फंड मैनेजर अपने उत्‍पाद के मैंडेट के मुताबिक निवेश का तरीका अपनाता है. इसी तरह देखें तो हम आमतौर पर वित्‍तीय, औद्योगिक और कंज्‍यूमर डिस्क्रेशनेरी (जिसका नेतृत्‍व ऑटो करता है) सेगमेंट के लिए सकारात्‍मक नजरिया रखते हैं.

Long Term Investment: लॉन्‍ग टर्म निवेश के लिए क्‍या हो सकते हैं बेहतर विकल्‍प, आसान बिंदुओं में समझें

श्रीनिवास राव रावुरी, CIO, PGIM इंडिया म्‍यूचुअल फंड

"यह सबसे अच्छा समय था, यह सबसे बुरा समय था" -

चार्ल्‍स डिकेंस के अ टेल ऑफ टू सिटीज की यह शुरुआती पंक्ति है और यह संभवत: बाजार के मौजूदा परिदृश्‍य को सटीक तरीके से बताती है. हमारे सामने तरक्‍की का लंबा रास्‍ता है, लेकिन वैश्‍विक सुस्‍ती, भू-राजनीतिक मसलों, ऊंची ब्‍याज दरों जैसे तमाम मसलों का शोर भी है. भारतीय बाजारों में करीब 18 महीने तक की तेजी के बाद पिछले एक साल में मिलाजुला रुख देखा गया.

बाजार उतार-चढ़ाव वाला रहा है, लेकिन इसके लिए यह कोई असामान्‍य बात नहीं है. एक एसेट क्‍लास के रूप में देखें तो इक्विटीज यानी शेयरों में ऊंचा जोख‍िम रहता है और इसलिए उतार-चढ़ाव तो इक्विटी निवेश का एक हिस्‍सा है. लेकिन इसमें एक अच्‍छी बात यह है कि जितनी लंबी अवध‍ि तक निवेश बनाए रहें, उतार-चढ़ाव का तत्‍व सीमित होता जाता है. इसलिए दीर्घकालिक रूप में इक्विटी सर्वश्रेष्‍ठ एसेट क्‍लास हैं निवेश की सबसे जरुरी बात और लॉन्‍ग टर्म के लिए हम भारतीय बाजारों के लिए सकारात्‍मक बने हुए हैं.

यह सिर्फ इसकी वजह से नहीं है कि एक लंबे समय अवध‍ि में उतार-चढ़ाव का असर सीमित हो जाता है, बल्कि इससे भी ज्‍यादा इस वजह से है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था और यहां के कॉरपोरेट में तरक्‍की की बेहतरीन संभावनाएं हैं, स्‍थायी-मजबूत सरकार और नीतियों का दौर है तथा वैश्विक मंच पर पहले से काफी बेहतर स्थिति (जीडीपी के % में निर्यात सात साल के ऊंचे स्‍तर पर) है. इसके निवेश की सबसे जरुरीनिवेश की सबसे जरुरी बात बात अलावा, हम जबरदस्‍त टैक्‍स कलेक्‍शन, बचत दर में सुधार और भारतीय कंपनियों के बहीखातों में सुधार देख रहे हैं. इन सबकी वजह से निवेश और खर्च की दर भी सुधरती है और अर्थव्‍यवस्‍था की वृद्धि दर भी.

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करीब पांच साल के अंतराल के बाद क्षमता इस्‍तेमाल 75 फीसद तक पहुंच गई है, जिसकी वजह से हम मध्‍यम अवध‍ि में पूंजीगत व्‍यय में सुधार की जमीन तैयार होते देख रहे हैं.

अब इस पर बहस की जा सकती है कि खासकर विकसित देशों में मंदी या सुस्‍ती का असर कम रहेगा या व्‍यापक रहेगा, या महंगाई टिकने वाला होगा या कुछ समय के लिए. लेकिन कमोडिटीज और एनर्जी की कीमतों (ऊर्जा निवेश की सबसे जरुरी बात आयात का हिस्‍सा जीडीपी के 4 फीसद तक होता है) में कमी आई है जो कुछ राहत की बात है. हम पूरे भरोसे से यह नहीं कह सकते कि मार्जिन का दबाव कम हुआ है, लेकिन यह जरूर कह सकते हैं कि अब चीजें सही दिशा में जा रही हैं, कम से कम कमोडिटी उपभोग के मामले में.

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हालांकि, कई ऐसे जोख‍िम हैं जिनका हमें ध्‍यान रखना होगा. पहला, अनिश्चित भू-राजनीतिक परिदृश्‍य और सप्‍लाई चेन की निरंतरता के मसले लंबे समय तक बने रहने वाले हैं. दूसरा, अब करीब एक दशक के कम ब्‍याज दरों और आसान नकदी के माहौल से ऊंची ब्‍याज दरों और नकदी में सख्‍ती वाले माहौल की तरफ बढ़ा जा रहा है. पहले जोख‍िम की वजह से महंगाई न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता है और हमने यह देखा है कि केंद्रीय बैंक सख्‍त मौद्रिक नीतियों से इस पर अंकुश के लिए कोशिश में लगे हुए हैं.

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भारत में हमें कुछ और समस्‍याओं के शुरुआती संकेत मिल रहे हैं- विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आ रही है, व्‍यापार घाटा ऊंचाई पर है और रुपए में काफी कमजोरी है. महंगाई लगातार ऊंचाई पर बनी हुई है और पिछले करीब तीन तिमाहियों से यह रिजर्व बैंक के 6% के सुविधाजनक स्‍तर से ऊपर है. कई दूसरे देशों के मुकाबले हमने बेहतर प्रदर्शन किया है और हमारी ग्रोथ रेट भी बहुत अच्‍छी है, लेकिन अर्थव्‍यवस्‍था की इस अलग राह या बेहतरीन प्रदर्शन से जरूरी नहीं कि बाजार एक-दूसरे से जुड़े नहीं हों, भले ही प्रदर्शन कितना ही बढ़ि‍या हो. इसलिए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि शॉर्ट टर्म में हमारे बाजार भी दूसरे बाजारों के साथ ही चलेंगे.

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वैश्विक तरक्‍की में मौजूदा अनिश्चिचता के माहौल को देखते हुए बाजारों के लिए मौजूदा साल काफी चुनौतियों वाला हो सकता है. वैश्विक स्‍तर पर और भारत में ऊंची ब्‍याज दरों की वजह से शेयरों के वैल्‍युएशन में उस बढ़त पर जोख‍िम आ सकता है, जिसका हाल में भारतीय बाजारों को फायदा मिला है. इसके अलावा भारत के कई राज्‍यों में मानसून अनियमित रहने की वजह से खाद्य महंगाई भी ऊंचाई पर रहने की आशंका है.

किसी फंड हाउस में हर फंड मैनेजर अपने उत्‍पाद के मैंडेट के मुताबिक निवेश का तरीका अपनाता है. इसी तरह देखें तो हम आमतौर पर वित्‍तीय, औद्योगिक और कंज्‍यूमर डिस्क्रेशनेरी (जिसका नेतृत्‍व ऑटो करता है) सेगमेंट के लिए सकारात्‍मक नजरिया रखते हैं। वित्‍तीय सेगमेंट (खासकर बैंक) अब ऐसी स्थिति में हैं जहां कर्ज की मांग और उसकी उठाव बढ़ रही है।

Investment Portfolio: भारत निवेश की सबसे जरुरी बात में स्थिर मोदी सरकार से आया सुधार, Foreign Investors ने India में किया मोटा निवेश

विदेशी निवेशकों ने मजबूत अर्थव्यवस्था, स्थिर सरकार और उल्लेखनीय सुधारों को देखते हुए विदेशी निवेशकों ने भारत को अपने इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो में इंडिया को अपग्रेड कर डेडीकेटेड अलोकेशन की श्रेणी में डाल दिया है.

Investment Portfolio: भारत में स्थिर मोदी सरकार से आया सुधार, Foreign Investors ने India में किया मोटा निवेश

Foreign Investment in India: भारत में 2014 के बाद से ही केंद्र में पूर्ण बहुमत की स्थिर सरकार है. पूर्ण बहुमत का लाभ उठाकर सरकार ने कई सुधार किए हैं. विदेशी निवेशकों (FPI) ने मजबूत अर्थव्यवस्था, स्थिर सरकार और उल्लेखनीय सुधारों को संज्ञान में लिया. इसे देखते हुए विदेशी निवेशकों (Foreign investors) ने भारत को अपने इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो (Investment Portfolio) में इंडिया को अपग्रेड कर डेडीकेटेड अलोकेशन की श्रेणी में डाल दिया है. Oyo Layoffs: ओयो में 600 कर्मचारियों की छंटनी, कंपनी ने जारी किया बयान

इक्विटी विशेषज्ञों ने कहा है कि विदेशी निवेशकों ने भारत को अपने निवेश पोर्टफोलियो में एक समर्पित आवंटन के रूप में अपग्रेड किया है. इसके पहले इन्वेस्टर्स ने भारत को उभरते बाजारों की श्रेणी में रखा था और केवल चीन ही डेडीकेटेड अलोकेशन (Dedicated Allocation) की श्रेणी में था.

मुंबई में ग्रीनलैंड इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट एलएलपी के संस्थापक और सीआईओ अनंत जटिया के अनुसार, पहले, निवेशकों ने भारत को उभरते बाजारों में समूहीकृत किया था और तुलनात्मक रूप से केवल चीन एक "समर्पित आवंटन" उभरता हुआ बाजार था.

विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि चीन में कोविड के चलते अनिश्चितता की वजह से निवेशक भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं. फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टर्स (FPI) भारत की ओर आ रहे हैं. आंकड़ों की बात करें तो नवंबर और दिसंबर की शुरुआत में 5 अरब डॉलर FPI आया है, जबकि 2022 के शुरुआती निवेश की सबसे जरुरी बात 10 महीनों में 23 अरब डॉलर आया है.

उन्होंने कहा कि फ़्लिप प्रभावशाली है क्योंकि फेड फ़ंड दर के साथ तरलता की लागत में काफी वृद्धि हुई है, जो वर्तमान में 3.83 प्रतिशत है, इस महीने अतिरिक्त 50 आधार महीने बढ़ने की उम्मीद है.

भारतीय इक्विटी पर ध्यान केंद्रित करने वाले सिंगापुर स्थित शेयर बाजार विशेषज्ञ सुनील सचदेवा ने कहा कि भारतीय शेयर बाजारों ने हाल के महीनों में अच्छा लचीलापन दिखाया है, और एक नया विकास प्रक्षेपवक्र मारा है, हालांकि कुछ प्रमुख वैश्विक बाजारों में 15-20 प्रतिशत की गिरावट आई है. आर्थिक अनिश्चितताओं के कारण प्रतिशत.

सचदेवा ने कहा, "यह लचीलापन सरकार के अच्छे नियामक सुधारों, सहायक नीतियों निवेश की सबसे जरुरी बात और घरेलू खपत के अच्छे स्तर के साथ अर्थव्यवस्था पर RBI की पैनी नज़र से आया है."

उन्होंने कहा कि यह बहु-वर्षीय विकास चक्र की शुरुआत है और यह निवेशित रहने का समय है. उन्होंने कहा, 'हमने यहां एफआईए कार्यक्रम में एक बाजार के रूप में भारत में बड़ी दिलचस्पी देखी है और हर कोई भारतीय शेयर चाहता है. अंतरराष्ट्रीय और घरेलू निवेशक भारत की विकास गाथा का हिस्सा बनना चाहते हैं. कुछ महीने पहले भारत की चीन से तुलना करने पर अंतरराष्ट्रीय निवेशकों में इस बात को लेकर असमंजस था कि कहां निवेश किया जाए.

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SIP के जरिए निवेश को लेकर ये हैं 7 सबसे बड़े मिथक! जान लीजिए फायदे में रहेंगे

SIP Investment Myths: क्या आपके मन में भी म्यूचुअल फंड्स, SIP, निवेश जैसे शब्द सुनकर भारी भरकम ख्याल आने लगते हैं, और आपको लगने लगता है कि ये आपके बस की बात नहीं. दरअसल ऐसा इसलिए है क्योंकि आपको इन चीजों को लेकर या तो अधूरी जानकारी है, या फिर जो भी जानकारी है वो गलत है.

  • SIP को लेकर निवेशकों में कुछ मिथक हैं
  • SIP निवेश निवेश की सबसे जरुरी बात को लेकर 7 सबसे बड़े मिथक
  • SIP को लेकर ज्यादातर लोगों में है अधूरी जानकारी

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SIP के जरिए निवेश को लेकर ये हैं 7 सबसे बड़े मिथक! जान लीजिए फायदे में रहेंगे

नई दिल्ली: Common Myths of SIP: क्या आपके मन में भी म्यूचुअल फंड्स, SIP, निवेश जैसे शब्द सुनकर भारी भरकम ख्याल आने लगते हैं, और आपको लगने लगता है कि ये आपके बस की बात नहीं. दरअसल ऐसा इसलिए है क्योंकि आपको इन चीजों को लेकर या तो अधूरी जानकारी है, या फिर जो भी जानकारी है वो गलत है. हम यहां पर आपको सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) को लेकर 7 ऐसे Myth यानी मिथक बताने जा रहे हैं जो अक्सर लोगों के मन में रहते हैं.

मिथक नंबर 1- SIP सिर्फ छोटे निवेशकों के लिए है.

सच्चाई- ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है. SIP की शुरुआत आप भले ही 500 या 100 रुपये की छोटी रकम से कर सकते हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आप रकम बढ़ा नहीं सकते. आप 1 लाख रुपये या इससे ज्यादा की रकम भी SIP के जरिए म्यूचुअल फंड्स में निवेश कर सकते हैं. आपको SIP के जरिए कितना पैसा निवेश करना है ये इस बात पर निर्भर करता है कि आपका लक्ष्य कितना है.

मिथक नंबर 2: SIP एक 'निवेश प्रोडक्ट' है

सच्चाई- SIP का मतलब होता है, सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान, ये कोई प्रोडक्ट नहीं है बल्कि एक तरीका है जिसके जरिए आप म्यूचुअल फंड में नियमित अंतराल पर निवेश करते हैं. मतलब आप SIP के जरिए निवेश करते हैं, SIP में निवेश नहीं करते. SIP के जरिए आप उस म्यूचुअल फंड को चुनते हैं जिसमें आप निवेश करना चाहते हैं और पैसे डालते हैं. आप अपनी रिस्क क्षमता के मुताबिक इक्विटी या डेट म्यूचुअल फंड्स का चुनाव करते हैं.

मिथक नंबर 3- बाजार में उछाल के दौरान SIP न करें

सच्चाई: ये आमतौर पर हर दूसरा व्यक्ति सोचता है कि बाजार जब गिरेगा तब हम SIP के जरिए निवेश करेंगे. जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है. लंबी अवधि के लिए SIP करने पर बाजार के उतार चढ़ाव का आपके निवेश पर असर नहीं पड़ता, यानी आप रेगुलर SIP करते हैं तो बाजार की गिरावट में आपको ज्यादा यूनिट मिलती हैं, और जब बाजार चढ़ता है तो कम, ऐसे में लंबी अवधि में बाजार के उतार चढ़ाव का असर खत्म हो जाता है.

मिथक नंबर 4: SIP की रकम को बदल नहीं सकते

सच्चाई: इस भ्रम को दिमाग से निकाल दीजिए, SIP इतना फ्लेक्सिबल है कि आप जब चाहें निवेश की राशि को घटा या बढ़ा सकते हैं. जब आपको लगे कि आप SIP की रकम में इजाफा करना चाहते हैं या घटाना चाहते, आप कर सकते हैं. आप निवेश की समय सीमा को भी घटा या बढ़ा सकते हैं.
हालांकि कुछ फंड्स के लिए SIP की न्यूनतम राशि और समयसीमा तय होती है. आपको इसे बदलने के लिए दस्तावेज और फॉर्म भरने की जरूरत होगी. लेकिन कोई जुर्माना या शुल्क नहीं लगेगा.

मिथक नंबर 5- जब बाजार गिरे तो SIP रोक दें

सच्चाई- जब शेयर बाजार में गिरावट होती है तो SIP के जरिए आप ज्यादा से ज्यादा यूनिट्स हासिल करते हैं, ऐसे में ये कहना कि जब शेयर बाजार टूट जाए तो अपनी SIP रोक देना चाहिए, सही सलाह नहीं है. बल्कि अगर आप ऐसा करते हैं तो आप बाजार में बेहतरीन कमाई का मौका गंवा रहे हैं. SIP के जरिए निवेश करने का मकसद ही फेल हो जाएगा अगर आप बाजार की गिरावट में निवेश बंद कर देंगे. हां आप ये जरूर कर सकते हैं कि अपने निवेश लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अच्छे म्यूचुअल फंड्स का चुनाव करें और रेगुलर SIP जारी रखें

मिथक नंबर 6- एक ही SIP सालों तक चलाएं

सच्चाई- अक्सर लोग एक ही SIP की राशि को सालों तक जारी रखते निवेश की सबसे जरुरी बात निवेश की सबसे जरुरी बात हैं, बल्कि अगर आप मोटा पैसा जमा करना चाहते हैं तो समय समय पर आपको SIP की रकम को भी बढ़ाते रहना चाहिए. जैसे हर साल आपकी सैलरी बढ़ती है तो उसी अनुपात में आपकी SIP की रकम भी बढ़नी चाहिए.

मिथक नंबर 7- SIP गारंटीड रिटर्न देता है

सच्चाई- SIP के जरिए म्यूचुअल फंड्स में निवेश से आपको रिटर्न की कोई गारंटी नहीं मिलती है. म्यूचुअल फंड्स मार्केट लिंक्ड होते हैं इसलिए जैसे जैसे मार्केट परफॉर्म करता है आपका रिटर्न भी प्रभावित होता है. लेकिन लंबी अवधि में SIP के जरिए निवेश से आप अच्छा रिटर्न हासिल करते हैं. जो आमतौर पर दूसरे पुराने डेट इंस्ट्रूमेंट्स से ज्यादा होता है.

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